स्नेह से मनायें दीपावली

आनन्द, उल्लास, प्रसन्नता एवं प्रकाश का उत्सव है दीपावली



दीपावली का पर्व पंचदिनात्मक पर्व होता है क्योंकि यह पांच दिन तक मनाया जाता है। इस वर्ष दीपावली पर्व 25 अक्टूबर से 29 अक्टूबर तक मनाया जा रहा है। इस पर्व का शुभारम्भ 25 अक्टूबर शुक्रवार को धनत्रयोदशी (धनतेरस) से हो रहा है। इस वर्ष सूर्योदय व्यापिनी कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी 26 अक्टूबर को रहेगी इसलिए धनवंतरी जयंती 26 अक्टूबर शनिवार को होगी। कृष्ण त्रयोदशी चूंकि एक दिन पूर्व 25 अक्टूबर को होगी इस कारण धनतेरस पर किया जाने वाला यम निमित्त दीप दान शुक्रवार 25 अक्टूबर को ही होगा। दीपावली का दूसरा मुख्य पर्व नरक चतुर्दशी या रूप चौदस के रूप में मनाया जाता है जो कि 26 अक्टूबर को होगा। इस दिन सूर्योदय पर स्नान, सायंकाल में दीपदान किया जाता है एवं इसी दिन हनुमान जन्मोत्सव भी मनाया जाता है। कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीपावली मनाई जाती है और इसका विशेष महत्व रहा हैं। इस बार 27 को भी सुबह रूप चौदस रहेगी और प्रदोष कालीन अमावस्या रात में होने से दीपावली 27 को ही मनाई जायेगी। 28 अक्टूबर के दिन गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट एवं 29 अक्टूबर को भाई दूज का पर्व मनाया जायेगा। भाई दूज को यमद्वितीया भी कहा जाता है। 



धनत्रयोदशी को सामान्य भाषा में धनतेरस कहा जाता है। यह आरोग्य एवं धनप्राप्ति का पर्व दीपावली से दो दिन पूर्व कार्तिक माह की कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाता है। इसके दो मुख्य रूप हैं 1) धनवंतरी जयंती और 2) धनतेरस।


समुद्र मंथन के समय धनवंतरी का प्राकट्य हुआ था आयुर्वेद का उपदेश देने के कारण वैद्यगण इस दिन भगवान धनवंतरी की जयंती मनाते हुए उनका विधिवत पूजन करते हैं। धनतेरस के शुभ मुहूर्त पर नये बर्तन, आभूषण तथा अन्य वस्तुएं खरीदकर लाने की परंपरा है। इस दिन बर्तन खरीदकर लाने का विशेष महत्व होता है। यह किवदंति  है कि बर्तन के साथ समृद्धि सुख एवं सौभाग्य का आगमन होता है। यह भी परंपरा है कि इस दिन किसी भी व्यक्ति को उधार नहीं देना चाहिए। संध्या के समय घर के मुख्य द्वार दक्षिण दिशा की ओर मुख करके दीपक जलाना चाहिए। इससे कहा जाता है कि अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता और यमराज प्रसन्न होते हैं। 



दीपावली पर लक्ष्मीजी के साथ गणेश जी की पूजा का किया जाना आवश्यक बताया गया है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार लक्ष्मीजी की मुखकांति अवसाद से श्रीहीन हो गयी तो विष्णु भगवान ने उनसे उनके दुःख का कारण पूछा तो विदित हुआ कि यह कारण था उनका संतानहीन होना। लक्ष्मीजी व्याकुल तो थी हीं वह अपनी सखी पार्वती जी के पास गयी और उन्हे समस्त वृतान्त बताया। लक्ष्मीजी ने पार्वती से कहा कि उनके कई पुत्र हैं वह एक पुत्र लक्ष्मीजी को गोद दे दे। पार्वतीजी ने कहा कि उनका एक पुत्र बड़ा नटखट है जो खाली नहीं बैठ सकता कुछ न कुछ तोड़-फोड़ करता रहता है और तुम चंचला हो, इसलिए मैं तुम्हें गणेश जी को गोद देती हूं। लक्ष्मीजी ने गणेश जी को सहर्ष स्वीकार किया और विश्वास दिलाया कि वह गणेशजी को अपने पुत्रवत ही समझेंगी। अतः यह वरदान दिया गया कि जब भी लक्ष्मीजी का पूजन किया जायेगा वह गणेश जी के पूजन के अभाव में अधूरा रहेगा इसलिए लक्ष्मीजी के पूजन की साथ गणेश जी के पूजन की परंपरा चली आ रही है।


एक अन्य कथा के अनुसार इस  दिन रामचन्द्र जी रावण का वध करने के पश्चात अयोध्या वापिस आये थे और उनके स्वागत में अयोेध्या में दीप जलाये गये थे और तब से यह दीप जलाने की परम्परा चली आ रही है। 



दीपावली शब्द दीप एवं आवली की सन्धि से बना है। आवली का अर्थ होता है पंक्ति। इस प्रकार दीपावली शब्द का अर्थ दीपों की पंक्ति होता है। यह एक आनन्द, उल्लास, प्रसन्नता एवं प्रकाश का उत्सव है। इस उत्सव में स्नेह का भी सम्मेलन है। धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन एवं भाईदूज ये पांच उत्सव पांच विभिन्न सांस्कृतिक विचारधाराओं को लेकर इस उत्सव में सम्मिलित हुए हैं। 



एक कथा के अनुसार एक बार कार्तिक मास की अमावस्या को जब सूर्य तुला राशि में था, लक्ष्मी जी मृत्युलोक में भ्रमण के लिए अवतरित हुई। चारों और अंधकार ही अंधकार था और वे इस अंधकार में मार्ग से भटक गयीं। उन्होने निश्चय किया कि वह रात्रि में मृत्युलोक में ही निवास करेंगी तथा सूर्योदय के पश्चात बैकुण्ड को लौटेेंगी। जनता द्वार बंद करके अपने घरों में निद्रा निमज्जित थी। लक्ष्मी जी की दृष्टि एक द्वार पर पड़ी जो खुला था जिसमें एक छोटा सा दीपक टिमटिमा रहा था। लक्ष्मीजी उस प्रकाश की ओर चली गयीं जहां उन्होने देखा कि एक बुढ़िया चरखा कात रही थी। लक्ष्मीजी उसी कुटिया में रूक गयीं। बुढ़िया की जब आंख खुली तो उसने पाया कि कुटिया के स्थान पर एक भव्य आकर्षक महल निर्मित हो चुका है और चारों और धन-धान्य हीरे जवाहरात बिखरे हुए हैं। तभी से रात्रि को दीप जलाकर प्रत्येक प्राणी लक्ष्मीजी के आगमन की प्रतिक्षा करता है तथा द्वार खोलकर रात्रि में जागरण का भी प्रचलन है।