बच्चों में बढ़ रहा है माइग्रेन

छात्र-छात्राओं और कामकाजी महिलाओं में माइग्रेन की समस्या अधिक होती है 



   माइग्रेन न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है। आम तौर पर स्कूली छात्र-छात्राओं और कामकाजी महिलाओं में माइग्रेन की समस्या अधिक देखने को मिलती है। इस बीमारी में सिर में असहनीय दर्द होता है, जो शुरू-शुरू में तो आम दर्द निवारक गोलियों से ठीक हो जाता है, परंतु बाद में ये गोलियां बेअसर हो जाती हैं, इसलिए समय रहते बीमारी का पता लगने पर तुरंत इलाज करना जरूरी है। माइग्रेन का दर्द बच्चों में खासकर माथे पर होता है और आधे से 1 घंटे तक रहता है, जबकि बड़ों में यह दर्द 4 घंटे से पूरे दिन तक रह सकता है। सभी बच्चों में माइग्रेन के संकेत अलग-अलग होते हैं। दवाओं से माइग्रेन को कंट्रोल किया जा सकता है।


माइग्रेन होने के हैं कई कारण


   दिमाग के रसायन (सिरोटोनिन) में कमी आने के कारण माइग्रेन होता है। जब यह रसायन एक खास स्तर से कम हो जाता है तो रक्तवाहिकाएं फैलने लगती हैं और ऐसे में दर्द शुरू हो जाता है। माइग्रेन एक आनुवांशिक बीमारी है। अतः जिन अभिभावकों को यह समस्या होती है, उनके बच्चों में भी माइग्रेन होने की संभावना अधिक होती है। ज्यादातर बच्चे खाने के प्रति लापरवाह होते हैं। समय पर खाना न खाने के कारण भी उनको माइग्रेन हो सकता है। मॉडर्न लाइफस्टाइल के कारण अधिकतर बच्चे रात को देर से सोते हैं इसलिए अनिद्रा के कारण भी उन्हें माइग्रेन की समस्या हो सकती है। अभिभावकों द्वारा बच्चों पर पढ़ाई और परीक्षाओं में ज्यादा अंक लाने के दबाव के कारण वे तनावग्रस्त हो जाते हैं। इस कारण से भी बच्चों में माइग्रेन हो सकता है। खान-पान, हार्मोनल, रासायनिक और पर्यावरण से जुड़े बाहरी कारण भी माइग्रेन के लिए जिम्मेदार होते हैं। कुछ बच्चों को खास परिस्थितियों और खास चीजों से एलर्जी होती है। अगर वे इन स्थितियों में अधिक समय तक रहेंगे तो उन्हें माइग्रेन हो सकता है। लक्षण आंखों के आगे अंधेरा छाना या धुंधला दिखाई देना। आंखों के सामने आड़ी -तिरछी रेखाएं दिखना। सिर के सामने के हिस्से और आंखों के आसपास तेज दर्द होना। गर्दन के निचले हिस्से में दर्द होना। जी मिचलाना, पेटदर्द होना, उल्टियां होना और शरीर में कमजोरी आना। तेज आवाज, तेज रोशनी और किसी विशेष गंध को सहन न कर पाना, सुस्ती और कार्यक्षमता में कमी, लगातार सिरदर्द होना और दर्द निवारक दवाओं का भी असर न होना।


सावधानियां



  • बच्चे की खान-पान संबंधी चीजों की जांच करें। जिन-जिन चीजों को खाने से माइग्रेन होता है, उन्हें बच्चे की डायट में शामिल न करें।

  • इस बात का ध्यान रखें कि बच्चा ज्यादा देर तक भूखा न रहे। 6-7 घंटे के बाद कुछ न कुछ खाने को दें।

  • माइग्रेन से पीड़ित बच्चे को अच्छी नींद की जरूरत होती है, इसलिए उसका कमरा तेज धूप और चकाचौंध वाली रोशनी वाला नहीं होना चाहिए।

  • तेज गंध वाले परफ्यूम, मसाले, अगरबत्ती और कीटनाशक दवाओं से बच्चे को दूर रखें, क्योंकि इनसे भी माइग्रेन बढ़ सकता है।

  • बच्चे को ज्यादा देर तक टीवी और कंप्यूटर के सामने न बैठने दें। पढ़ाई के लिए स्टडी टेबल पर रोशनी की सही व पर्याप्त व्यवस्था करें।

  • माइग्रेन से पीड़ित बच्चे में नियमित रूप से व्यायाम की आदत डालें। माता-पिता ऐसे बच्चों पर पढाई और परीक्षाओं में ज्यादा नंबर लाने के लिए दबाव न डालें। बहुत देर तक बैठकर पढ़ाई न करने दें। उसे बीच-बीच में थोड़ी देर के लिए टहलने या ब्रेक लेने के लिए कहें।